ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है और इस में गैस कौन कौन सी है?

आपने ग्लोबल वार्मिंग के बारे में तो सुना ही होगा की ये क्या होता है और इससे क्या नुक्सान हो सकता है. ग्लोबल वार्मिंग की सबसे बड़ी वजह में से एक बड़ी वजह है ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट. ग्रीनहाउस इफ़ेक्ट क्या है (What is Green house effect in Hindi) और इस में गैस कौन कौन सी है इसकी जानकारी होनी हर इंसान के लिए बेहद जरुरी है क्यों की हर कोई इसी पृथ्वी पर निर्भर है. यहाँ के उचित वातावरण के बिना मनुष्य की  सामान्य जिंदगी संभव नहीं है. वातावरण का संतुलन सबसे महत्वपूर्ण होता है क्यों संतुलन बिगड़ा तो वातावरण में प्रभाव पड़ता है और फिर सीधे सीधे लोगों की ज़िन्दगी में इसका असर देखने को मिलता है.

हमारी  पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है जिसे हम ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जानते हैं. यही वजह है की  सभी देशों के सरकार वातावरण संतुलन बनाये रखने के लिए वृक्षारोपण का कार्यक्रम लगातार चलाये रहे हैं और अधिक से अधिक लोगों को इस में शामिल कर के पृथ्वी की हरियाली बढ़ा रहे हैं. जितने अधिक पेड़ होंगे पृथ्वी का संतुलन बना रहेगा, पेड़ों के कम होने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जायेगी. इस तरह पृथ्वी की गर्मी बढ़ने में इसका अहल रोल होता है.ये पोस्ट  ग्रीनहाउस प्रभाव किसे कहते हैं इसकी पूरी जानकारी आपको यहाँ पुरे विस्तार से देगा. ग्रीनहाउस इफ़ेक्ट क्या होता है (What is greenhouse effect in Hindi) और इसके फायदे और नुक्सान क्या है ये भी आप यहाँ जानेंगे.

ग्रीन हाउस गैस कौन कौन सी है – इसके मुख्य घटक 

चलिए देखते हैं  ग्रीनहाउस गैस के अंदर कौन सी गैस हैं जो इसके प्रभाव में अपनी भूमिका निभाते हैं.

जलवाष्प (Vapour H2O)

वैसे तो हम सोच भी नहीं सकते की पानी से जो भाप बनता है वही ग्रीनहाउस गैस में से एक मुख्य गैस है जो हमारी पृथ्वी के वातावरण को गर्म बनाने का काम करता है. सबसे इंटरेस्टिंग बात ये है की भाप हम इंसानो द्वारा सीधे तोर पर नहीं बनता है ये हमारे मौसम में होने वाले बदलाव की वजह बनता है. जैसे जैसे वातावरण में तापमान बढ़ता है पानी के भाप बनने की प्रक्रिया भी तेज़ होती है और ये भाप वातावरण के निचले स्तर पर ही स्थित की tendency होती है. जहाँ पर ये सूरज से आने रौशनी और इसके साथ रहने वाले रेडिएशन को अब्सॉर्ब कर लेता है और दुनिया गर्म होता है.

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)

कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस का सबसे महत्वपूर्ण गैस है. वायुमंडल में पाए जाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड का प्राकृतिक श्रोत ज्वाला मुखियों से निकलने वाली धुंआ, कार्बन से बना कोई भी मटेरियल जलता है तो भी कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होता है. सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड जीवों द्वारा सांस छोड़ने पर पैदा होता है. ये श्रोत एक प्रकार से संतुलित होती हैं जो की एक physical, केमिकल  बायोलॉजिकल प्रोसेस का सेट होता है जिसे sink  कहा जाता है और ये वातावरण से CO2 को हटाने का काम करते हैं.  इस में सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्राकृतिक sink स्थलीय वनस्पति होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया के दौरान CO2 को लेते हैं.

मीथेन (CH4)

मीथेन दूसरी सबसे ज्यादा जरुरी ग्रीनहाउस गैस है. ये कार्बन दी ऑक्साइड की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली होता है. वैसे ये कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कम concentration में मौजूद रहता है. इसके अलावा मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत कम समय के लिए रहता है. मीथेन का वातावरण में रहने का समय 10 साल के लगभग में होता है जबकि कार्बन डिसऑक्सीडे सैकड़ों सालों के लिए वातावरण में मौजूद रहता है. मीथेन गैस मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय इलाके और उत्तरी वेस्टलैंड में  उत्पन्न होते हैं.

Ozone (O3)

ओजोन एक प्राकृतिक गैस है जो ऑक्सीजन के 3 अणुओं से मिलकर बना होता है. ये एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो इसके प्रभाव को उत्पन्न करता है. सतह पर ये सूर्य प्रकाश की मौजूदगी में हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड के रिएक्शन की वजह से बनता है. ओजोन वायुमंडल के दोनों सतह पर मौजूद होता है जहाँ ये सूरज से सूरज से आने वाले पराबैंगनी किरणों से हमारी पृथ्वी को सुरक्षा करता है.

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और फ्लुओरिनटेड गैसें 

अन्य गैसे जो इस में शामिल उनमे से अधिकतर इंडस्ट्रियल एक्टिविटी द्वारा पैदा होते हैं जिनमे से नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लुओरिनेटेड गैसें जिसे halocarbon भी बोलते हैं, शामिल है. इस में जो एक्स्ट्रा गैसें होती है वो हैं CFC, सल्फर हेक्सा फ्लोराइड, हाइड्रो फ्लुओरोकार्बोन और परफ्लुओरोकार्बन शामिल हैं. मिटटी और पानी में नेचुरल बायोलॉजिकल रिएक्शन की वजह से नाइट्रस ऑक्साइड की बैकग्राउंड concentration कम होती है. जबकि फ्लोराइड गैसों की उपस्थिति इंडस्ट्रियल सोर्स तक होता है.

नाइट्रोजन ट्राईफ्लोराइड  (NF3)

ग्रीनहाउस गैसों में उपस्थित एक और गैस नाइट्रोजन ट्राईफ्लोराइड भी होता है, NF3 का इस्तेमाल काफी बढ़ चूका है और इसके 2 बड़े मुख्य कारण हैं. पहला तो ये है की microelectronic में इसका इस्तेमाल काफी बढ़ता जा रहा है और दूसरा ये है की NF3 का air-emission  पहले से ही non-existent माना जाता था इसीलिए इस गैस का उपयोग विकल्प के रूप में PFC की जगह में इस्तेमाल करने के लिए प्रस्तावित किया गया था. क्यूंकि PFC का इस्तेमाल करना ग्रीनहाउस गैस इफ़ेक्ट पैदा करने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था.

ग्रीनहाउस इफ़ेक्ट/प्रभाव के फायदे – Advantages of greenhouse effect in Hindi

ग्रीनहाउस गैसें और और इनका प्रभाव एक सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से हमारे ग्रह पृथ्वी में जीवन संभव हो सका है.

  • ग्रीनहाउस प्रभाव पृथ्वी के सतह में एक संतुलित तापमान बना कर के रखता है जिसके कारण मनुष्य, पेड़- पौधे और जानवर इसके आदि हो जाते हैं.
  • ये एक फ़िल्टर की तरह काम  करता है जो सूर्य से  आने वाले हानिकारक किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेज देता है. ओजोन लेयर एक सूर्य की पाराबैगनी किरणों को सोख लेता है, कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी गैसें लम्बे wavelength वाले रेडिएशन को अब्सॉर्ब कर लेते हैं. इस प्रभाव के बिना सूर्य से आने वाले रेडिशन के हानिकारक असर से बचना नामुमकिन होता.
  • बहुत लम्बे समय से इंसान ने इस प्रभाव की मदद से season मौसम न होते हुए भी पौधों को उगाने में सफलता पायी है, Artificially इस प्रभाव को उत्पन्न कर के off season गैर-मौसमी फसल उगाई जाती हैं.
  • सोलर चलने वाले वाटर हीटर इसी प्रभाव का इस्तेमाल कर के पानी को गर्म करते हैं. इसकी वजह से हमारी ऊर्जा खर्च होने से बचती है और 20-30 हमारी बिजली की बिल में भी बचत होती है.
  • समुद्र सतह से पृथ्वी के सतह को मेन्टेन करने में यही प्रभाव काम करता है. ये ध्रुवी पर जमी हुई बर्फ को पिघलने से रोकता है, और इस तरह से ये पृथ्वी को भी  डूबने से बचाता है.
  •  कार्बन डाइऑक्साइड और ओजोन गैसें हमारे वातावरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. इस गैसों का संतुलन हमारे वातावरण के जीवन चक्र को सामान्य रूप से चलाने में काफी महत्वपूर्ण निभाता है.

ग्रीनहाउस इफ़ेक्ट/प्रभाव के नुक्सान – Disadvantages of greenhouse effect in Hindi

इन गैसों के नियमित संतुलन से पृथ्वी में जीवन संभव है और अगर इस मे संतुलन ठीक न हो तो फिर इसके नुक्सान भी हैं.

  • चूँकि ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी के तापमान को मेन्टेन कर के रखते हैं, तो तापमान बढ़ने पर इसका सबसे पहला प्रभाव इसके मौसम पर पडता है. इसका मतलब है बहुत गर्म मौसम के साथ ही प्राकृतिक विपदाएं. आंधी और तूफ़ान जो हमे अक्सर दिखाई देते हैं वो इसी प्रभाव के संतुलन में गड़बड़ होने का नतीजा है.
  • हमारे समुन्द्रतल की ऊंचाई है वो भी बर्बाद हो जाएगा. आप पहले ही स्कूलों और कॉलेज में पढ़ चुके होंगे की ध्रुव में बर्फ जमी हुई हैं जो तापमान के निरंतर बढ़ने से  पिघलने लगी हैं और इसकी इसके पिघलने से हमारे महासागर का जलस्तर भी बढ़ता जा रहा है जिससे बढ़ का खतरा भी बढ़ने लगा है.
  • समुंद्री जीवन और ecosystem बर्बाद हो जायेंगे. महासागर कार्बन डाइऑक्साइड को एब्सॉर्ब करते हैं जिससे संदरी जल का alakalinity level बढ़ जाता है. अल्कालिनिटी  के बढ़ जाने से समुद्री जीवन में काफी बदलाव हो जायेगा इसका परिणाम भी बहुत बुरा होगा. ध्रुवीय भालू और वहां पर रहने वाले पेंगुइन का निवास भी खतम  ये भी विलुप हो जायेंगे.
  • ग्लोबल वार्मिंग हमारे मौसम को  बदलता जा रहा है ये आप भी महसूस कर रहे होंगे. दुनिया के अधिकतर  हिस्से में होने वाली बारिश प्रभावित हो जाएगी जिससे खेत बंजर हो जाएँगी और रेगिस्तान का क्षेत्र बढ़ता जायेगा.
  • इस प्रभाव का असर  और अर्थव्यवस्था में भी ज़बरदस्त होगा. तापमान के बढ़ने से दुनिया के वैश्विक उत्पादन में 2-3 प्रतिशत की कमी आएगी. उत्पादन में कमी  खाने में कमी पैदा करेगा इंसानों को बार बार अकाल पर अकाल का सामना करना पड़ेगा. जिससे तरह तरह की बिमारियों की चपेट में इंसान आने लगेंगे.