सरल शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि चलती कारों और औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकलते प्रदूषण की वजह से हवा में कुछ तत्वों की उपस्थिति बढ़ जाती है जिस कारण धरती पर एसिड रेन (अम्लीय वर्षा) होती है।
एसिड रेन (अम्लीय वर्षा) के कारण
एसिड रेन (अम्लीय वर्षा) होने में प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्वालामुखी तथा क्षयकारी वनस्पति गैस से जहरीली गैस निकलती है जिससे एसिड रेन (अम्लीय वर्षा) का निर्माण होता है। हालांकि अधिकांश गैस मानव निर्मित स्रोतों से जन्म लेती हैं, जैसे कि जीवाश्म ईंधन दहन।
अम्ल वर्षा की प्रक्रिया (How Acid Rain Takes Place)
प्राकृतिक और मानव निर्मित स्रोतों के द्वारा वातावरण में सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड पहुँचते हैं। इनमे से कुछ ऑक्साइड सीधे सूखे जमाव के रूप में धरती पर पहुँच जाते हैं।
सूर्य की रौशनी के कारण वायुमंडल में फोटो ऑक्सीडेंट जैसे ओजोन, का निर्माण होता है। यह फोटो ऑक्सीडेंट सल्फर या नाइट्रोजन के साथ मिलकर सल्फ्युरिक एसिड, नीट्रिक एसिड आदि का निर्माण करते हैं। अम्ल वर्षा में सल्फर, अमोनिया, नाइट्रेट आदि आयन होते हैं जो गीले जमाव के रूप में पृथ्वी पर जमा हो जाते हैं।
अम्ल वर्षा के प्रभाव (Effects of Acid Rain in Hindi)
- अम्ल वर्षा के कारण वातावरण के गंध में बदलाव आने लगता है, आँखों और शरीर में जलन होने लगती है और साँस लेने में दिक्कत आती है। इसके कारण साँस की बीमारियां, अस्थमा, कैंसर जैसे बीमारी हो सकते हैं। इससे खाना और पीने का पानी भी ख़राब होने लगते हैं। इनमे विषैले धातुओं जैसे ताम्बा, कैडमियम, एल्युमीनियम आदि की मात्रा भी बढ़ने लगती है।
- अम्ल वर्षा के कारण हाइड्रोजन आयन और मिट्टी के पोषक तत्व जैसे कि पोटैशियम, मैग्नेशियम आदि में प्रक्रिया हो जाती है जिससे मिट्टी अनुपजाऊ होने लगता है। मिट्टी में नाइट्रेट की मात्रा भी घटने लगती है।
- अम्ल वर्षा के कारण नदियों, तालाबों आदि के पानी विषैले होने लगते हैं एवं उनकी pH मात्रा घटने लगता है जिससे पानी के जीवों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- कई ऐतिहासिक इमारतों भी अम्ल वर्षा के कारण क्षय (corrode) होने लगते हैं। लाइमस्टोन व संगमरमर से बने ईमारत इनके कारण धीरे धीरे नष्ट होने लगते हैं। आगरा में मौजूद ताजमल को अम्ल वर्षा के कारण काफी नुकसान झेलना पड़ा है
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