Thursday, April 9, 2020

1957 Copyright Act 1957 law and Punishment - प्रतिलिप्याधिकार (कॉपीराइट) अधिनियम

प्रतिलिप्याधिकार (कॉपीराइट) अधिनियम 1957 Copyright Act 1957 law and Punishment


कॉपीराइट कानून (Copyright law)


जिस प्रकार मेहनत, मजदूरी करके अर्जित की गई सम्पत्ति पर उसी व्यक्ति का अधिकार होता है, ठीक इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति अपनी मेहनत व बौद्धिकता से किसी पुस्तक, लेख, कविता, कहानी, फिल्म या नाटक की रचना करता है, तो उस पर उस व्यक्ति का अधिकार हो जाता है और कोई भी अन्य व्यक्ति उस पुस्तक, रचना आदि का उपयोग बिना पुर्वानुमति के नहीं कर सकता।

प्रतिलिप्याधिकार (copyright)

किसी बौद्धिक कृति पर उसके रचनाकार के अधिकार को ही कॉपीराइट या प्रतिलिप्याधिकार कहते हैं। यदि कॉपीराइट धारक की पूर्वानुमति के बिना कोई व्यक्ति उस रचना का उपयोग करता है, तो कॉपीराइट धारक व्यक्ति इस अपराध के खिलाफ अदालत में जा सकता है और हर्जाने का दावा कर सकते है। भारतीय प्रतिलिप्याधिकार कानून का अधिनियमन 1857 ई. में किया गया था।


भारत मे कॉपीराइट ( Copyright in India)


भारत में ब्रिटिश काल के दौरान से ही किसी-न-किसी रूप में ऐसे कॉपीराइट कानून रहे हैं, जो सृजनात्मक रचनाकार/कलाकार के सृजन के स्वामित्व को सुरक्षित रखते थे। प्रारम्भ में भारत में भी उस समय इंग्लैण्ड में प्रचलित कॉपीराइट कानून ही मान्य था। फिर 1847 ई. में पहली बार भारतीय प्रतिलिप्याधिकार कानून बना। इसके बाद इंग्लिश कॉपीराइट एक्ट, 1911 बनाया गया, जो अलगे वर्ष 31 अक्टूबर, 1912 से सम्पूर्ण भारत में लागू हो गया। इसे संशोधित करके वर्ष 1914 में एक नया कॉपीराइट कानून लागू किया गया, लेकिन वर्ष 1946 में एक बार फिर इसे बदल दिया गया। अन्तत: वर्ष 1957 में वर्तमान 'भारतीय प्रतिलिप्याधिकार अधिनियम' स्वतन्त्र भारत में संसद द्वारा पारित किया गया। वर्ष 1957 का यही कानून आज भी अस्तित्व में है।


भारतीय प्रतिलिप्याधिकार अधिनियम 1957 (Indian Copyright Act 1957)


यह अधिनियम, जिसे कृति स्वाम्य अधिनियम भी कहा जाता है। इसे 21 जनवरी, 1958 से भारतवर्ष में लागू किया गया। इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति, किसी दूसरे के परिश्रम, निर्णायक बुद्धि या कौशल का प्रतिफल न हड़पे। इस प्रकार कॉपीराइट एक्ट, मौलिक कार्य उत्पादन को सांविधिक दर्जा प्रदान करता है।
यह अधिनियम केवल भारतीय संघ क्षेत्र में प्रभावी है, किन्तु इसकी धारा 40 के अनुसार केन्द्र सरकार को अधिकार है कि वह भारत से बाहर, किसी भारतीय या विदेशी नागरिक द्वारा प्रकाशित सामग्री पर भी इस कानून को प्रभावी कर सकती है।
यह कानून मौलिक कृतियों पर ही लागू होता है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि कृति, किसी नए विचार या नई खोज पर आधारित हो। विभिन्‍न अदालतों ने अपने फैसलों में कहा है कि 'विचारों' पर कोई कॉपीराइट नहीं होता है। कॉपीराइट अधिकार मात्र विचारों की लिखित या मुद्रित अभिव्यक्ति या इसके प्रस्तुतीकरण के कौशल या ज्ञान के सम्बन्ध में होता है।


समाचार और कॉपीराइट (News and Copyright)


सिद्धान्तत: समाचार, कॉपीराइट कानून के दायरे में नहीं आते हैं और किसी भी पत्र-पत्रिका में घटनाओं से सम्बन्धित सूचना या जानकारी, एक-सी हो सकती है. लेकिन लेख, चार्ट, नक्शे, दस्तावेज समान नहीं हो सकते। वांछित मौलिकता का सम्बन्ध विचार की अभिव्यक्ति से है और इसकी नकल अर्थात्‌ अभिव्यक्त करने के ढंग की नकल, किसी अन्य कृति में नहीं होनी चाहिए।
जब लेखक अपनी रचना का स्वयं संक्षिप्तीकरण करता है, तो वह कानूनन उसकी मौलिक कृति मानी जाती है लेकिन किसी रचना या लेख का अनुवाद, कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन माना जाता है


कॉपीराइट सम्बन्धित कानूनी प्रावधान (Copyright Related Law)


भारतीय प्रतिलिप्याधिकार अधिनियम में व्यक्ति की मौलिक कृति पर उसके अधिकार को बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं।
इस कानून के प्रमुख प्रावधान संक्षेप में निम्नलिखित प्रकार से हैं -

1. प्रतिलिप्याधिकार केवल मौलिक कृति पर ही लागू होता है।

2. कृति के पुनर्मुद्रण और संशोधित संस्करणों पर भी प्रतिलिप्याधिकार जारी रहता है।

3. अप्रकाशित कृतियों पर भी प्रतिलिप्याधिकार होता है।

4. कोई कृति साहित्यिक है या नहीं, इसका फैसला अदालत के विवेक पर निर्भर है।

5. कोई व्यक्ति इस कानून के तहत ही कॉपीराइट का अधिकारी होता है अन्यथा नहीं।

6. अप॑जीकृत कृतियों पर प्रतिलिप्याधिकार होता है।

7. कृति का स्वामी कृति में प्रतिलिप्याधिकार का प्रथम स्वामी होता है।

8. मौलिक कृति (चित्रों को छोड़कर) पर रचयिता की मृत्यु के 50 वर्षों बाद तक कॉपीराइट कानून बना रहता है।

9. यदि रचयिता एकाधिक हों तो जिस रचयिता की मृत्यु सबसे बाद में है, उसके 50 सालों बाद तक कृति पर प्रतिलिप्याधिकार बना रहता है।

10. चित्र के मामले में प्रतिलिप्याधिकार की अवधि, चित्र बनाने के समय से 50 साल बाद तक होती है।

11. यदि किसी कृति की प्रतियों को सार्वजनिक रूप से नि:शुल्क वितरित किया
जाता है, तो भी उसे प्रकाशित माना जाता है।

12. प्रतिलिप्याधिकार पूर्ण कृति पर ही नहीं, बल्कि इसके भाषान्तर या अनुकूलन के पर्याप्त भाग के सम्बन्ध में यह सब कार्य किए जाने पर भी लागू होता है।

13. कृति के स्वामी को उसका भाषान्तर तैयार करने और प्रकाशित करने का अनन्य अधिकार होता है। भाषान्तर कृति पर भी रचयिता को मूल कृति की भाँति प्रतिलिप्याधिकार हासिल होता है।

14. प्रतिलिप्याधिकार का उल्लंघन होने पर सिविल और आपराधिक, दोनों प्रकार के मामले बनते हैं।

15. प्रतिलिप्याधिकार कानून का उल्लंघन करने पर एक वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों ही दण्ड दिए जा सकते हैं।

16. कृति का पंजीकरण, प्रतिलिप्याधिकार कार्यालय में कराया जा सकता है।

17. अनुसन्धान, निजी अध्ययन, समालोचना या समीक्षा के लिए कृति का प्रयोग किया जा सकता है।


प्रतिलिप्याधिकार का अतिलंघन (Infringement of Copyright)


निम्नलिखित कार्यों से प्रतिलिप्यधिकार का आतिलंघन नहीं होगा, अर्थात्‌

1. किसी साहित्यिक, नाट्य, संगीतात्मक कृति का अनुसन्धान या निजी अध्ययन के प्रयोजनों के लिए,

2. उस कृति का या किसी अन्य कृति की समालोचना या समीक्षा के प्रयोजनों के लिए, उचित प्रयोग

3. किसी साहित्यिक, नाटक, संगीतात्मक या कलात्मक कृति का सामयिक घटनाओं की रिपोर्ट देने के प्रयोजन के लिए,

4. किसी समाचार-पत्र, पत्रिका या सामयिकी में रेडियो-विसारण द्वारा या चलचित्र फिल्म में या फोटोग्राफ के माध्यम से, उचित प्रयोग।


प्रतिलिप्याधिकार अधिनियम उल्लंघन हेतु दण्ड (Copyright act violation punishment)


1. कोई व्यक्ति जो किसी कृति में प्रतिलिप्याधिकार का या इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी अन्य अधिकार का, जान-बूझकर अतिलंघन करेगा या अतिलंघन दुष्प्रेरित करेगा, वह कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से अथवा दोनों से दण्डनीय होगा।

2. किसी भवन या अन्य संरचना का सन्निर्माण, जो किसी अन्य कृति में प्रतिलिप्याधिकार का अतिलंघन करता है या यदि पूरा कर लिया जाए तो अतिलंघन करेगा, इस धारा के अधीन नहीं होगा।

3. किसी न्यायिक कार्यवाही के प्रयोजन के लिए या किसी न्यायिक कार्यवाही की रिपोर्ट देने के प्रयोजन के लिए किसी साहित्यिक, नाट्य, संगीतात्मक या कलात्मक कृति या पुनरुत्पादन।

4. किसी विधानमण्डल के सचिवालय द्वारा या जहाँ विधानमण्डल में दो सदन हों, वहाँ विधानमण्डल के किसी भी सदन के सचिवालय द्वारा तैयार की गई किसी कृति में किसी साहित्यिक, नाट्य, संगीतात्मक या कलात्मक कृति का पुनरुत्पादन या प्रकाशन जो उस विधानमण्डल के सदस्यों के ही उपयोग के लिए हो, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अनुसार बनायी गई या प्रदाय की गई ऐसी प्रमाणित प्रति में किसी साहित्यिक, नाट्य या संगीतात्मक कृति का पुनरुत्पादन,

5. किसी प्रकाशित साहित्यिक या नाट्य कृति से किसी यथोचित उद्धरण का जनता में पठन या सुपठन, मुख्यत: प्रतिलिप्याधिकार रहित सामग्री के संकलन में, जो शिक्षा-संस्थाओं के उपयोग के लिए सद्भावपूर्णतया आशयित है और शीर्षक में तथा प्रकाशक द्वारा या उसकी ओर से निकाले गए किसी विज्ञापन में वैसे वर्णित है,

6. ऐसे प्रकाशित साहित्यिक या नाट्य कृतियों में से जो स्वयं शिक्षा-संस्थाओं के उपयोग के लिए प्रकाशित नहीं है और जिनमें प्रतिलिप्याधिकार अस्तित्व में है लघु-लेखांश प्रकाशित नहीं किए जाते हैं।

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