Tuesday, February 2, 2021

माइक्रोफ़ोन:

एक माइक्रोफोन (एमआईसीएस, आर्ड्स माइक) एक ट्रांसड्यूसर है, जो ध्वनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। विभिन्न प्रकार के माइक्रोफोन विभिन्न रिकॉर्डिंग आवश्यकताओं और परिस्थितियों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किए गए ऑडियो पिकअप पैटर्न विशेषताओं के साथ उपलब्ध हैं। माइक्रोफोन की दिशात्मक संपत्ति, जिसे पिकअप पैटर्न भी कहा जाता है, सही प्रकार के माइक्रोफ़ोन का चयन करने के लिए महत्वपूर्ण है। पिकअप पैटर्न के अनुसार, माइक्रोफोन को वर्गीकृत किया जा सकता है: ओ यूनिडायरेक्शनल माइक्रोफोन एक या दो लोगों के लिए पक्ष में एक तरफ दो तरह उपयुक्त हैं। पृष्ठभूमि शोर अवांछनीय है इन्हें अपने दिल के आकार के पिक-अप पैटर्न के कारण कार्डियोइड मैक्स भी कहा जाता है। ओ द्वि-दिशात्मक माइक्रोफोन का उपयोग तब होता है जब दो लोग सीधे एक दूसरे का सामना कर रहे हैं। ओ ओमनी-दिशात्मक माइक्रोफोन का उपयोग बड़ी संख्या में लोगों को उठाने के लिए किया जाता है और पृष्ठभूमि शोर को इकट्ठा करने के लिए उत्कृष्ट हैं। स्टीरियो रिकॉर्डिंग विशेष रूप से डिजाइन किए गए स्टीरियो माइक्रोफोन की आवश्यकता है कम से कम दो माइक्रोफोन का उपयोग करके यह भी प्राप्त किया जा सकता है ऐसा एक ऐसा तरीका है-एम (एस-साइड) माइकिंग एक द्वि-दिशात्मक माइक्रोफोन बाएं और दाएं के लिए ध्वनि उठाता है और एक सुपर कार्डियोइड माइक्रोफोन सामने से आवाज उठाता है। दोनों माइक्रोफोन का उत्पादन एक जटिल सर्किट के माध्यम से खिलाया जाता है। एक्स-वाई माइकिंग स्टीरियो रिकॉर्डिंग का एक और तरीका है। दो कार्डियोइड माइक्रोफोन एक दूसरे के बगल में रखा जाता है 45 डिग्री कोण पर 45 डिग्री के बराबर और 45 डिग्री के बराबर एक कोण। इस तरह दोनों माइक्रोफोन केंद्र से ध्वनि उठाते हैं। 

टर्नटेबल: 
एक डिस्कवर या डिस्क रिकॉर्ड पर एक टर्नटेबल की आवश्यकता होती है और इस जानकारी को प्रवर्धन, मिश्रण, प्रसंस्करण और अन्य ध्वनि तत्वों के साथ एकीकरण के लिए कंसोल में भेजता है। 

कॉम्पैक्ट डिस्क और रिकॉर्ड्स: 
विनाइल रिकॉर्ड या एलपीएस को कॉम्पैक्ट डिस्क पर किए गए उच्च गुणवत्ता वाले डिजिटल रिकॉर्डिंग द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। डिस्क को खेलने में, अधिकांश नियंत्रण डेस्कों में "पूर्व-फीका", "पूर्व-सुन" या "ऑडिशन" सुविधा है जो ऑपरेटर को ट्रैक करने के लिए सक्षम बनाता है और हवा पर खेलने के लिए इसे सेट करने से पहले इसकी मात्रा को समायोजित करता है। एक रिकॉर्ड के साथ, नाली पर एक नज़र अक्सर यह संकेत देने के लिए पर्याप्त होगा कि क्या गतिशील रेंज में व्यापक बदलाव है। 

ऑडियोटेप: 
ध्वनि में गति या स्टूडियो में मानक गति पर ऑडियोटेप पर रिकॉर्ड किया जा सकता है। स्टूडियो में इस्तेमाल किए जाने वाले ऑडियोटे लगातार निर्मित रूप में हो सकते हैं
एफएम और रेडियो का निजीकरण:

 हाल के वर्षों में भारत में रेडियो और टेलीविजन प्रसारण के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण विचार हैं। टेलीविजन के आगमन के साथ यह दिखाई दिया कि रेडियो के महत्व को धीरे-धीरे कम किया गया था। यह वास्तव में कुछ वर्षों और रेडियो स्वामित्व और रेडियो श्रोताओं की कमी हुई है। लेकिन ऐसा लगता है कि एफएम संचरण के रूप में एक बार फिर से रेडियो फिर से उतारने वाला है। 

एफएम ट्रांसमिशन स्टेशन स्थानीय स्टेशनों के रूप में श्रोताओं की स्थानीय जरूरतों के लिए काम कर रहे हैं। एफएम प्रसारण के आंशिक निजीकरण ने भी रेडियो को बड़े पैमाने पर संचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाया है। एफएम पर प्रसंग कार्यक्रमों को शहरी युवाओं के साथ बहुत लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि कार्यक्रम विशेष रूप से उन्हें पूरा करते हैं। इसके अलावा, एफएम प्रसारण कारों और अन्य वाहनों में भी लोकप्रिय हो रहे हैं। वे मोटर चालकों को बाधाओं, ट्रैफ़िक और मौसम आदि के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं। एफएम प्रसारण ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत लोकप्रियता प्राप्त की है।

रेडियो की पहुंच

 रेडियो की पहुंच:

ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन अब प्रसार भारती का हिस्सा हैं
संसद के एक अधिनियम के माध्यम से भारत का स्वायत्त प्रसारण निगम
1990 से प्रसार भारती बोर्ड ने अखिल भारतीय प्रशासन का कार्यभार संभाला है । 23 नवंबर 1997 से प्रभावी रेडियो और दूरदर्शन।

1. वर्तमान में ऑल इंडिया रेडियो में 183 सहित 200 से अधिक रेडियो स्टेशन हैं
2. पूर्ण विकसित स्टेशन और नौ रिले केंद्र और तीन अनन्य विविध भारती
 वाणिज्यिक केंद्र।
 3. सभी आकाशवाणी में 310 ट्रांसमीटर हैं और यह आबादी को रेडियो कवरेज प्रदान करता है
4.  97.3 प्रतिशत देश के 90 प्रतिशत क्षेत्र में फैला हुआ है।
5. ऑल इंडिया रेडियो का बाहरी सेवा प्रभाग एक महत्वपूर्ण कड़ी है
6. भारत और दुनिया के बाकी हिस्सों, 25 भाषाओं में प्रसारण।  इनमें से 16 हैं विदेशी और 9 भारतीय भाषाएं हैं।
7. ऑल इंडिया रेडियो का नेशनल चैनल 18 मई 1998 को प्रसारित हुआ। यह चैनल रात्रि सेवा के रूप में 6.50 बजे से काम करता है।  रोज सुबह 6.10 बजे, 64% क्षेत्र और लगभग 76% जनसंख्या को कवर करता है।
 

रेडियो फीचर क्या है?

रेडियो फीचर क्या है?

रेडियो फीचर श्रोताओं को खबरों से आगे की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रस्तुत किया गया फीचर होता है। इस फीचर को श्रोत केवल सुन सकते हैं इसलिए इसमें संगीत और ध्वनि का अतिरिक्त प्रभाव सम्मिलित किया जाना अपेक्षित होता है। रेडियो रीचर पढ़े-लिखे वर्ग के साथ-साथ अनपढ़ वर्ग के लिए सहज ही ग्राह्य होता है। अन्य श्रेणियों के फीचर की तरह ही रेडियो रूपक (फीचर) में भी कल्पनाशीलता, तथ्ये, घटना अथवा विषय का विवरण, विवेचन, लोगों के विचार, प्रतिक्रियाएँ और रोचकता होती है।

रेडियो फीचर की क्या विशेषता है?

रेडियो फीचर में फीचर के मूलभूत तत्व विद्यमाने होते हैं। जनसंचार का श्रव्य माध्यम होने के कारण व सुदूर क्षेत्र तक पहुँच रखने के कारण रेडियो का दायरा व्यापक होता है। लिपि-ज्ञान न रखने वाला वर्ग भी आसानी से इसके द्वारा प्रसारित संदेशों को ग्रहण करने में सक्षम होता है। इसलिए रेडियो फीचर में कल्पनाशीलता, तथ्य, घटना अथवा विषय को विवरण, विवेचन, लोगों के विचार, टिकिगााएँ और रोचकता के साथ-साथ संगीत एवं ध्वनि का भी अतिरिक्त प्रभाव होता है।

समाचार और फीचर में क्या प्रमुख अंतर है?

समाचार और फीचर में प्रमुख अंतर प्रस्तुतीकरण की शैली और विषयवस्तु की मात्रा का होता है। समाचार लेखन की सर्वाधिक प्रचलित शैली उल्टा पिरामिड शैली है जिसमें विषयवस्तु को महत्व के घटते क्रम में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि फीचर लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं है हालांकि प्राय: फीचर लेखन कथात्मक शैली में किया जाता है जो कि समाचार-लेखन की शैली के विपरीत प्रकार की शैली है। समाचार लेखन में लेखक को पूरे विषय को तथ्यानुरूप ही प्रस्तुत करना होता है। उसके स्वयं के विचारों के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता जबकि फीचर-लेखन में लेखक स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को समाहित कर सकता है। समाचार लेखन में संक्षिप्तता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है परंतु फीचर लेखन में विषयवस्तु को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है।


फीचर को मुख्यतः कितनी श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है ?

फीचर को मुख्यत: चौदह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(क) समाचार फीचर : समाचार पर आधारित फीचर को समाचार फीचर कहा जाता है। जहाँ उल्टा पिरामिड शैली में लिखा गया समाचार किसी विषय अथवा घटना को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है, वहीं फीचर उस समाचार को विस्तार से प्रस्तुत करता है। समाचार में लेखक के व्यक्तिगत विचारों का कोई स्थान नहीं होता परंतु फीचर में लेखक अपने विचारों को समाचार की पृष्ठभूमि के साथ जोड़कर व्यक्त कर सकता है।
 
(ख) मानवीय रुचिपरक फीचर : किसी समुदाय या समाज विशेष की रुचियों पर आधारित फीचर मानवीय रुचिपरकं फीचर कहलाता है।

(ग) व्याख्यात्मक फीचर : सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थितियों की तथा विविध समस्याओं की भावनात्मक दृष्टि से विवेचना व्याख्यात्मक फीचर में की जाती है।

(घ) ऐतिहासिक फीचर : इतिहास को कथात्मक एवं रुचिपरक तरीके से प्रस्तुत करना ऐतिहासिक फीचर कहलाता है।

(ङ) विज्ञान फीचर : विज्ञान की उपलब्धियों, खगोलीय घटनाओं, खोजों, संचार क्रांति से संबंधित विषयों पर लिखा गया फीचर विज्ञान फीचर कहलाता है।

(च) खेलकूद फीचर : खेल संबंधी जानकारी को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना खेलकूद फीचर का विषय है।

(छ) पर्वोत्सवी फीचर : समाज में मनाये जाने वाले उत्सव एवं पर्यों पर आधारित फीचर पर्वोत्सवी फीचर की श्रेणी में आते हैं।

(ज) विशेष घटनाओं पर आधारित फीचर : युद्ध, बाढ़ आदि आकस्मिक घटनाओं आदि पर आधारित फीचर।

(झ) व्यक्तिपरक फीचर : किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखा गया फीचर।

(अ) खोजपरक फीचर : विशेष रूप से छानबीन पर आधारित फीचर खोजपरक फीचर कहलाते हैं।

(ट) मनोरंजनात्मक फीचर : मनोरंजन के कार्यक्रमों पर आधारित फीचर।

(ठ) जनरुचि के विषयों पर आधारित फीचर : स्थानीय समस्याओं या सामाजिक विषयों पर आधारित फीचर।

(ङ) फोटो फीचर : एक विषय परे विविध आयामों के साथ ली गई तस्वीरों का प्रयोग कर फीचर का लेखन फोटो कहलाता है।

(ग) इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के फीचर : इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, यथा-रेडियो, टेलीविजन आदि के लिए तैयार किये जाने वाले फीचर इस श्रेणी के फीचर होते हैं।

Monday, February 1, 2021

Radio Broadcasting Technique and Radio Writing रेडियो प्रसारण तकनीक व रेडियो लेखन

रेडियो प्रसारण तकनीक Radio Broadcasting technique

रेडियो प्रसारण सम्बन्धी तकनीकी का प्रयोग 19वीं शताब्दी में प्रारम्भ किया गया। 1815 ई. में इटली के इंजीनियर मार्कोनी ने रेडियो टेलीग्राफी के माध्यम से पहला सन्देश प्रसारित किया। यह सन्देश मार्स कोड के रूप में था। विदेशी संचार माध्यमों का सामना करने के लिए भारत में प्रसारण के क्षेत्र को व्यापक बनाया गया है। जैसा कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं और उनके लिए अनेक प्रकार के विधान भी करने पड़ते हैं।
यह विचार करना पड़ता है कि इन प्रसारणों को किस प्रकार अपनी परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जाए और ये कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन ना करें। अब सरकारी नियन्त्रण का युग नहीं रहा है और संचार माध्यमों को स्वायत्तता मिल गई है। इसी कारण प्रसार भारती एक्ट वर्ष 1990 में बना, जिसके 14 और 15 अनुच्छेदों में एक प्रसारण परिषद्‌ के गठन की बात की गई।


ध्वनि अभिलेखागार Sound archives

रेडियो प्रसारण को बढ़ाने के लिए एक ध्वनि अभिलेखागार (साउण्ड आर्काइब्ज) बनाया गया है। यह एक प्रकार से रेडियो लाइब्रेरी है। वर्तमान में कैसेट और रिकॉर्ड का एक बड़ा बाजार बन गया है, पहले यह नही था और अभिलेखागार में दुर्लभ ध्वन्यांकन उपलब्ध था। इनमें 50,000 टेप उपलब्ध हैं, जिसमें 12,000 से अधिक संगीत के हैं। संगीत के अलावा साहित्य, कला, विज्ञान और राजनीति से जुड़े अनेक कार्यक्रम भी यहाँ सुरक्षित हैं। ध्वनि अभिलेखागार के साथ आकाशवाणी की अपनी कार्यक्रम प्रत्यंकन और विनिमय सेवा भी है।
आकाशवाणी के विभिन्‍न केन्द्रों से रिकॉर्डिंग मँगाई व भेजी जाती है। इसके विभिन्‍न केन्द्रों से तैयार उत्कृष्ट नाटक, रूपक और संगीत के कार्यक्रम आते हैं। रेडियो के पास शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, समूह गीत, देशभक्ति के गीत और अनेक महत्त्वपूर्ण विधाओं में कार्यक्रमों का एक विशाल संग्रह है। आकाशवाणी अभिलेखागार तथा प्रत्याकन और विनिमय सेवा के अन्तर्गत उपलब्ध कार्यक्रमों का रेडियो के विभिन्‍न केन्द्रों से प्रसारण किया जाता है। इन कार्यक्रमों को
बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार योजना भी है, जो वर्ष 1974 से प्रारम्भ की गई।

रेडियो लेखन Radio Writing

रेडियो लेखन अलग प्रकार की विधियां है। अलग तरह से अभिप्राय यह है कि लेखक को हमेशा इस बात के प्रति चौकस रहना पड़ता है कि वह सुनने के लिए लिख रहा है। इसलिए बात बहुत साफ-सुथरे ढंग से तथा सरलतम रूप में कही जानी चाहिए। 

प्रत्येक भाषा के दो रूप होते हैं। पहला- उच्चारित और दूसरा- लिखित। 

उच्चारित शब्दों की शक्ति असीम है। लिखित शब्दों की शक्ति उनसे कुछ कम आँकी जाती है। रेडियो लेखन में भाषा को दोनों रूपों से होकर गुजरना पड़ता है। रेडियो लेखन में साहित्य की विभिन्‍न विधाओं को ध्यान में रखना जरूरी  है। रेडियो लेखन में श्रोताओं की पसन्द को ध्यान में रखा जाना अत्यन्त आवश्यक होता है। रेडियो के लिए लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

1. वाक्य जितने छोटे और सरल हों, उतना अच्छा।

2. अधिक कठिन, अप्रचलित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

3. . उप-वाक्‍यों को जोड़ने के लिए 'व' और 'तथा' के स्थान पर “और' का ही प्रयोग प्रचलित है।

4. रेडियो पर हर कार्यक्रम की समय-सीमा निर्धारित होती है इसलिए जितने समय का आलेख माँगा गया हो, उतने समय में आ सके, इतना ही विस्तार दें। अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए।

5. यदि अपने ही क्षेत्र के प्रसारण के लिए कुछ लिखा जा रहा है तो उसमें क्षेत्रीय कहावतों, प्रचलित शब्दों का समावेश रचना को सुन्दरता और सजीवता ही देगा।


रेडियो लेखन के सिद्धान्त Radio Writing Theory


रेडियो लेखन के सिद्धान्त के मुख्य तत्त्व हैं-
1. शब्द
2. ध्वनि प्रभाव (क्रिया ध्वनि, स्थल ध्वनियाँ, प्रतीक ध्वनियाँ )
3. संगीत    4. भाषा    5. रोचकता
6. संक्षिप्तता  7. नवीनता  8. श्रोता समुदाय की जानकारी
9. मौन या नि:शब्दता

रेडियो आलेख के लिए चुने गए शब्द “बोले हुए प्रतीत हों। 'लिखित' शब्दों और 'बोले' हुए शब्दों में अन्तर होता है। उपयुक्त, उक्त, निम्नलिखित आदि शब्दों का लिखित भाषा में तो महत्त्व है, किन्तु बोले जाने वाले शब्दों में इनका महत्त्व खत्म हो जाता है।

रेडियो में ध्वनि-प्रभाव का अपना महत्त्व होता है। ध्वनियाँ ही दुरय- चित्र के निर्माण में सहायक होती हैं। पक्षियों की चहक, सुबह के आगमन का तो 'घोड़ों के ठपों की आवाज, युद्ध क्षेत्र की कल्पना को उत्पन्न करती है। जिन बातों और दृश्यों को साकार करने में कई वाक्यों और शब्दों का सहारा लेना पड़ता है, उन्हें रेडियो कुछ ही ध्वनियों के रिकॉर्डों के माध्यम से सुगमता से प्रस्तुत कर सकने में समर्थ है।
दरवाजे की दस्तकें, लाठी की ठक-ठक जैसी क्रियाओं की ध्वनियों का उपयोग भी रेडियो के पटकथाकार को करना होता है; जैसे- चीजों को जोर से पटकना व्यक्ति के क्रोध का प्रतीक है। किसी खास वातावरण का बोध कराने वाली ध्वनियाँ स्थल ध्वनियाँ कहलाती हैं; जैसे- गर्म चाय की आवाज, कुली-कुली की पुकार आदि, रेलवे स्टेशन की गहमा-गहमी का दृश्य साकार कर देती हैं।
नाटकीय स्थितियों के सृजन के लिए विशेष प्रतीकात्मक ध्वनियों का उपयोग किया जाता है। हास्य नाटिकाओं के बीच ठहाकों, युद्ध स्थल पर विस्फोटात्मक ध्वनियाँ और रोमेंटिक दृश्यों में झरनों की ध्वनियां व पक्षियों के चहचहाने की आवाजों का उपयोग रेडियो आलेख को सशक्त बनाता है।

रेडियो आलेख में संगीत का संयोग नाटकीयता को उभारने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। वातावरण बनाने, पात्र के भाव को उजागर करने और आलेख को गतिशील बनाने के लिए पटकथाकार संगीत का सहारा लेते हैं। रेडियो आलेख में संगीत का संयोग नाटकीयता को उभारने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है।

रेडियो के आलेख की भाषा का किताबी भाषा से बहुत कम सम्बन्ध होता है। रेडियो की भाषा सहज और सरल तथा बोलचाल बाली होती हैं। भाषा इतनी सरल हो कि उसमें दृश्य उत्पन्न करने की क्षमता होनी चाहिए।

रेडियो की ध्वनियाँ भी श्रोता को बहुत देर तक बाँधकर नहीं  रख सकती है। इसलिए रेडियो आलेख में बहुत छोटे-छोटे और बहुत सरल वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।


रेडियो लेखन के स्वरूप Types of Radio Writing

भेंटवार्ता

भेंटवार्ता के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न वार्ताएँ, संवाद, परिचर्चा, कहानी, पुस्तक, समीक्षा, कविता, सन्देश, सूचना, पत्रोत्तर, उद्घोषणा, हास्य-व्यंग्य, चिन्तन एवं समाचारों को शामिल किया जा सकता है। भेंटवार्ता दो पक्षों के बीच होती है। वक्ता और श्रोता एक अच्छी वार्ता के लिए वक्ता की मानसिकता को अपने साथ बाँधकर रखना ही वार्ताकार की सफलता मानी जाती है।

रेडियो वार्ता

रेडियो वार्ता को सफल एवं बोधगम्य बनाने हेतु वार्ता के विषय की रोचकता के साथ-साथ सहज एवं सरल शैली का होना आवश्यक है, जिसमें विचारों को दृष्टान्तों के साथ समझाया गया हो। वार्ता में कठिन एवं साहित्यिक शब्दों से बचना चाहिए। वार्ता का लेखन और प्रस्तुतीकरण दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। अत: लेखन और वाचन दोनों मिलकर ही वार्ता को सजीव एवं सफल बनाते हैं।

परिचर्चा एवं संवाद 

परिचर्चा को विचारगोष्ठी कहा जा सकता है, अर्थात्‌ विचार-विमर्श नियामक विषय एवं प्रतिभागियों का परिचय देकर जब परिचर्चा का प्रारम्भ करता है तो वह विषय का स्वरूप स्पष्ट करते हुए विषयगत एक प्रश्न को प्रतिभागियों के समक्ष रखता है तथा उस पर उनके विचार जानता है। इस प्रकार परिचर्चा का प्रारम्भ हो जाता है। यहाँ नियामक परिचर्चा को आगे बढ़ाने में एक कड़ी का कार्य करता है। परिचर्चा में विषय को सम्पूर्णता से प्रस्तुत करने एवं विचारों का सिलसिला बनाए रखने के लिए प्रतिभागी को नोट्स बना लेने चाहिए।

कहानी 

रेडियो पर प्रसारित होने वाली कहानी में वर्णित घटना, स्थान या व्यक्ति विवादास्पद नहीं होने चाहिए तथा व्यावसायिक वस्तुओं के नाम आदि के प्रयोग से भी बचा जाना चाहिए। रेडियो कहानी में अश्लीलता की भी कतई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। कहानी सरल एवं सुबोध भाषा में होनी चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि कहानीकार अपनी बात को सरल और रोचक तरीके से कहे।

भारत में रेडियो की शुरुआत और इसका इतिहास – History of Radio in India

  • रेडियो का अविष्कार किसने किया – Who Invented the Radio:
    – मारकोनी 
  • दुनिया के पहले रे़डियो स्टेशन कब और कहां शुरु हुआ – World First Radio Station:
    – साल 1918 में न्यूयॉर्क में हुई थी।
  • 13 फरवरी का दिन वर्ल्ड रेडियो डे के रुप में मनाने के लिए क्यों चुना गया – 
    13 फरवरी, साल 1946 से ही यूनाइटेड नेशंस ऑर्गेनाइजेशन द्धारा रेडियो प्रसारण की शुरुआत की गई थी, इसलिए इस दिन को वर्ल्ड रेडियो डे के रुप में मनाने के लिए चुना गया।
  • पहले रेडियो प्रसारण की शुरुआत कब हुई – Radio First Broadcast:
    – 24 दिसंबर 1906 को कैनेडियन वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने की थी।
रेडियो का अविष्कार प्रसिद्ध वैज्ञानिक मारकोनी कानूनी तौर पर इसकी शुरुआत होने के बाद साल 1923 में दुनिया में रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत हुई। रेडियो के बारे में यह तथ्य जानकर शायद आपको हैरानी हो, लेकिन शुरुआत में रेडियो को रखने के लिए 10 रुपए में लाइसेंस खरीदना पड़ता था, हालांकि बाद में लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे। और बाद में रेडियो संचार का एक बहुत बड़ा और सशक्त माध्यम बनता चला गया।

भारत में रेडियो की शुरुआत और इसका इतिहास – History of Radio in India

भारत में साल 1924 में सबसे पहले मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब रेडियो को लेकर आया था। इस क्लब ने साल 1927 तक रेडियो ब्रॉडकास्टिंग पर प्रसारण का काम किया था, हालांकि बाद में आर्थिक परेशानियों के चलते मद्रास क्लब द्धारा इसे बंद कर दिया गया था।

इसके बाद इसी साल 1927 में बॉम्बे के कुछ बड़े बिजनेसमैन ने भारतीय प्रसारण कंपनी को बॉम्बे और कलकत्ता में शुरु किया। इसके बाद साल 1932 में भारत सरकार ने इसकी जिम्मेदारी ले ली और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस नाम का विभाग शुरु किया, जिसका साल 1936 में नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio AIR) रख दिया गया, जो कि आकाशवाणी के नाम से भी जाना जाता है।

भारत में सरकार द्धारा बनाई गई रेडियो प्रसारण एक राष्ट्रीय सेवा थी, जिसके बाद पूरे देश में इसके प्रसारण के लिए स्टेशन बनाए गए थे और देश के कोने-कोने तक इसकी पहुंच बनाई गई थी।
यही नहीं रेडियो ने भारत की आजादी में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। आपको बता दें कि साल 1942 में नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण जब शुरु किया गया था, तब स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी जी ने इसी रेडियो स्टेशन से “अंग्रेजो भारत छोड़ों” का प्रसारण किया था।

यही नहीं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान “तुम मुझे खून दो, ‘मै तुम्हें आजादी दूंगा” का लोकप्रिय नारा रेडियो के द्धारा जर्मनी में प्रसारित किया गया था।

इसके अलावा कई नारे रेडियो के द्धारा प्रसारित कर लोगों के अंदर आजादी पाने की इच्छा जागृत की गई थी। हालांकि, भारत की आजादी के बाद साल 1957 ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर ‘आकाशवाणी’ रख दिया गया था।

वहीं अब रेडियो FM का रुप ले चुका है, और इसमें कई आधुनिक सेवाएं भी चालू की गई है। इसलिए यह अभी भी लोगों की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है और एक बड़े संचार के नेटवर्क के रुप में पूरी दूनिया पर फैला हुआ है।ने किया था इन्होंने दुनिया का पहला रेडियो संदेश इंग्लैंड से अमेरिका भेजा था।

Preproduction | Pre production क्या होता है ?

Preproduction | Pre production क्या होता है ? Table of Contents Preproduction kya hota hai – script– Lock the shooting script Budget- Finali...