रेडियो प्रसारण तकनीक - Radio Broadcasting technique
रेडियो प्रसारण सम्बन्धी तकनीकी का प्रयोग 19वीं शताब्दी में प्रारम्भ किया गया। 1815 ई. में इटली के इंजीनियर मार्कोनी ने रेडियो टेलीग्राफी के माध्यम से पहला सन्देश प्रसारित किया। यह सन्देश मार्स कोड के रूप में था। विदेशी संचार माध्यमों का सामना करने के लिए भारत में प्रसारण के क्षेत्र को व्यापक बनाया गया है। जैसा कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं और उनके लिए अनेक प्रकार के विधान भी करने पड़ते हैं।
यह विचार करना पड़ता है कि इन प्रसारणों को किस प्रकार अपनी परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जाए और ये कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन ना करें। अब सरकारी नियन्त्रण का युग नहीं रहा है और संचार माध्यमों को स्वायत्तता मिल गई है। इसी कारण प्रसार भारती एक्ट वर्ष 1990 में बना, जिसके 14 और 15 अनुच्छेदों में एक प्रसारण परिषद् के गठन की बात की गई।
ध्वनि अभिलेखागार - Sound archives
रेडियो प्रसारण को बढ़ाने के लिए एक ध्वनि अभिलेखागार (साउण्ड आर्काइब्ज) बनाया गया है। यह एक प्रकार से रेडियो लाइब्रेरी है। वर्तमान में कैसेट और रिकॉर्ड का एक बड़ा बाजार बन गया है, पहले यह नही था और अभिलेखागार में दुर्लभ ध्वन्यांकन उपलब्ध था। इनमें 50,000 टेप उपलब्ध हैं, जिसमें 12,000 से अधिक संगीत के हैं। संगीत के अलावा साहित्य, कला, विज्ञान और राजनीति से जुड़े अनेक कार्यक्रम भी यहाँ सुरक्षित हैं। ध्वनि अभिलेखागार के साथ आकाशवाणी की अपनी कार्यक्रम प्रत्यंकन और विनिमय सेवा भी है।
आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से रिकॉर्डिंग मँगाई व भेजी जाती है। इसके विभिन्न केन्द्रों से तैयार उत्कृष्ट नाटक, रूपक और संगीत के कार्यक्रम आते हैं। रेडियो के पास शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, समूह गीत, देशभक्ति के गीत और अनेक महत्त्वपूर्ण विधाओं में कार्यक्रमों का एक विशाल संग्रह है। आकाशवाणी अभिलेखागार तथा प्रत्याकन और विनिमय सेवा के अन्तर्गत उपलब्ध कार्यक्रमों का रेडियो के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारण किया जाता है। इन कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार योजना भी है, जो वर्ष 1974 से प्रारम्भ की गई।
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